Thursday, November 22, 2012

खत्‍म होते कश्‍मीरी रेशम उद्योग का पुनर्रूद्धार

विशेष लेख                                                                                                  *एम एल धर
                                                                                                        Courtesy Photo
    रेशम जम्‍मू कश्‍मीर का संजो कर रखे गए धरोहरों में से एक रहा है। घाटी में रेशम उत्‍पादन का वर्णन राजतंरगिनी सहित प्राचीन संस्‍कृत ग्रंथों में मिलता है। वस्‍त्रों की रानी माने जाने वाले कश्‍मीरी रेशम को उपभोक्‍ता इसकी चमक, शुद्धता और महीन गुणों के कारण हमेशा चाहते रहे हैं।

     मध्‍यकालीन युग में कश्‍मीर में रेशम के उत्‍पादन को सुल्‍तान जैनुल आबिदीन जिन्‍हें बादशाह के नाम से भी जाना जाता है। उन्‍होंने इस पर विशेष ध्‍यान दिया तथा नई उन्‍नत तकनीक का इस्‍तेमाल कर इस उद्योग को काफी फलते फूलते बनाने में मदद की। हालांकि परवान चढ़ते इस उद्योग को कश्‍मीर में अफगान शासन काल में बहुत क्षति पहुंची लेकिन 19वीं सदी में डोगरा शासनकाल में इस पर फिर से ध्‍यान दिया गया और रेशम का उत्‍पादन कश्‍मीर की अर्थव्‍यवस्‍था में महत्‍वपूर्ण बन गया। 20वीं सदी के पहले मध्‍य काल में कश्‍मीर का रेशम व्‍यापार अपने श्रेष्‍ठ रेशमी सूत की वजह से न केवल पूरे ब्रिटिश साम्राज्‍य में निर्यात किया जाता था बल्कि समूचे यूरोप में इसकी मांग थी।

     रेशम का उत्‍पादन एक श्रम आधारित कुटीर उद्योग है जिसमें कृषि और उद्योग दोनों ही शामिल हैं। यह एक मात्र नकदी फसल है जो 30 दिन के अंदर ही फायदा पहुंचा देता है। रेशम उत्‍पादन से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि कश्‍मीरी रेशम के कीड़े की नस्‍ल स्‍थानीय रूप से देशज है और यह दुनिया में सर्वोत्‍तम गुणवत्‍ता वाला कृमिकोष उत्‍पन्‍न करता है।

     दो दशक से अधिक समय तक राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार रहा रेशम का पोषण आज दुर्भाग्‍य से बदतर हालत में है। उपलब्‍ध आंकड़ों के मुताबिक कश्‍मीर में कृमिकोष का उत्‍पादन 90 के दशक के अंत में गिरकर 60 हजार किलोग्राम रह गया जबकि 80 के दशक में यह 15 लाख किलोग्राम से अधिक पर पहुंच गया था।

     कश्‍मीर में रेशम उद्योग के खराब होते हालात के कई कारण हैं। आमतौर पर माना जाता है कि इस उद्योग के एकाधिपत्‍य को समाप्‍त करने तथा कश्‍मीरी सूत कातने वालों का रेशम उत्‍पादन विभाग से अलग किए जाने से स्‍थानीय तौर पर कृमिकोष के इस्‍तेमाल में कमी आई। बाहरी व्‍यापारियों ने कृमिकोष की कीमतों में बढ़ोत्‍तरी न होने का फायदा उठाया। इन व्‍यापारियों ने कृमिकोष उत्‍पन्‍न करने वाले को अच्‍छे दामों पर अपने उत्‍पाद उन्‍हें बेचने के लिए बहला लिया, जिससे कश्‍मीर के कताई करने वालों के लिए बहुत कम कच्‍चा माल रह गया। सूत्रों ने बताया कृमिकोष के प्रति किलोग्राम की कीमत लगभग दो दशक में नहीं बढ़ाई गयी। उच्‍च गुणवत्‍ता वाले एक किलोग्राम कृमिकोष को किसानों से वर्ष 2009 तक केवल 180 रुपये में खरीदा जाता था। अभी उसकी कीमत 210 रुपये प्रति किलोग्राम है। यह इतना कम है जिससे इस क्षेत्र में उत्‍पादक आकर्षित नहीं हो सकते। वहीं खुले बाजार में इसकी कीमत 600 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती है।

     कश्‍मीर के कताई करने वाले कारखाने इटली की चर्खियों से 1897 से ही सूत कातते रहे हैं, जिसे बाद में 1963 में जम्‍मू कश्‍मीर उद्योग लिमिटेड को हस्‍तांतरित कर दिया गया। इसकी स्‍थापन क्षमता 584 चर्खियों की थी, जिसमें 2000 से अधिक कामगार काम करते थे। उन दिनों कश्‍मीर में रेशम का व्‍यापार बहुत गतिशील था। लेकिन अब अफसोस है कि कताई के कारखाने के बुनाई वाले पहिए लगभग शांत पड़े हैं। कश्‍मीर की कताई के कारखानों का एकाधिकार समाप्‍त किए जाने से उसमें कच्‍चे माल का अकाल पड़ गया और इसका परिणाम यह हुआ कि इन कारखानों में सैकड़ों चर्खियों की जगह 2008-09 में यह केवल 31 पर सिमट कर रह गया। इसके बाद कच्‍चे रेशम का उत्‍पादन बहुत तेजी से घटता गया। यहां तक कि हाल के वर्षों में इसका उत्‍पादन बहुत उत्‍साहजनक नहीं है। 2004-05 में 8.2 मीट्रिक टन का उत्‍पादन हुआ जबकि 2007-08 में यह बढ़कर 21.2 मीट्रिक टन हुआ। लेकिन 2008-09 में फिर से यह गिरकर 17.1 मीट्रिक टन पर पहुंच गया। जम्‍मू कश्‍मीर एक मात्र राज्‍य है जो बिवोल्‍टाइन रेशम उत्‍पन्‍न करता है। लेकिन विडंबना यह है कि देशज रूप से उत्‍पन्‍न किए जाने वाला 30 प्रतिशत कृमिकोष का ही स्‍थानीय तौर पर रेशम के निर्माण में प्रयोग किया जाता है जबकि बाकी का कृमिकोष बाहरी व्‍यापारी ले जाते हैं। अधिकारियों का कहना है कि निजी रूप से इस काम में लगे लोग देशज तौर पर उत्‍पन्‍न 25 प्रतिशत कृमिकोष इस्‍तेमाल करते हैं जिसकी वजह से राज्‍य में रेशम उद्योग चल रहा है।

     इसके अलावा स्‍थानीय कालीन बुनने वाली इकाइयां भी देशज रेशम के स्‍थान पर कम गुणवत्‍ता के चीनी रेशम के सूत को प्राथमिकता देते हैं क्‍योंकि इसकी कीमत कम होती है इससे स्‍थानीय रेशम का उद्योग प्रभावित हुआ है।

     इसके अलावा शहतूत की पैदावार कम किए जाने से भी इसके उत्‍पादन पर फर्क पड़ा है। शहतूत के पत्‍तों पर ही रेशम के कीड़े पनपते हैं। शहतूत के रोपने का स्‍थान सिमट कर केवल 963 एकड रह गया है। इन्‍हीं सब वजहों और कृमिकोष की कम बाजार मूल्‍य की वजह से किसान इस क्षेत्र से विमुख हो गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कृमिकोष उत्‍पन्‍न करने वालों की संख्‍या जहां 1947 में 60 हजार थी वहीं यह 2011 में ढाई हजार रह गयी।

     इसके बावजूद कृषि और रेशम उत्‍पादन मंत्री श्री गुलाम हसन मीर का कहना है कि अभी सब कुछ खत्‍म नहीं हुआ है। उन्‍हें आशा है कि कश्‍मीर के रेशम उद्योग की चमक फिर से फैलेगी। वे पिछले कुछ वर्षों में अच्‍छे सूचकों की वजह से आशान्वित हैं। उनका कहना है कि कश्‍मीर में 2008-09 में 738 मीट्रिक टन कृमिकोष का उत्‍पादन हुआ। 2009-10 में यह बढ़कर 810 मीट्रिक टन पर पहुंचा जबकि पिछले वित्‍तीय वर्ष में यह 970 मीट्रिक टन की ऊंचाई पर पहुंच गया है, जिसकी कीमत 11 करोड़ रुपये है।

     रेशम उत्‍पादन मंत्री श्री मीर का मानना है कि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की बड़ी संभावना है और इसीलिए सरकार ने इस क्षेत्र के पुनर्रूद्धार के कई उपाय किए हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर शहतूत के पेड़ लगाए जाने को बढ़ावा देना शामिल है। इस सिलसिले में सरकार ने शहतूत के पेड़ों को लगाने के लिए बेरोजगार युवकों सहित विभिन्‍न समूहों को खाली पड़ी जमीन आवंटित करने की अनूठी योजना शुरू की है। रेशम उत्‍पादन विभाग ने इस योजना को तंगमर्ग जाने वाले 24 किलोमीटर के मार्ग पर आरंभ कर दिया है। यह रास्‍ता गुलमर्ग के पर्यटन केन्‍द्र का आधार शिविर है। यह विभाग किसानों को शहतूत के बीज और पौधे भी निशुल्‍क वितरित कर रहा है तथा उन्‍हें हर पौधे पर सात रुपये की सहायता भी दे रहा है। रेशम उत्‍पादन मंत्री ने यह भी कहा कि कृमिकोष उत्‍पादन का ढांचा विकसित करने के काम से जुड़े हर परिवार को 50 हजार रुपये की वित्‍तीय मदद भी दी जा रही है तथा इसके साथ ही उन्‍हें बीमा के तहत भी लाया जा रहा है। किसानों को इसे सुखाने की नवीनतम तकनीकी सहायता दी जा रही है, जिससे कि वे उत्‍पाद की गुणवत्‍ता बरकरार रख सकें। रेशम उत्‍पादन विभाग के अपर निदेशक डॉ. मलिक फारूक ने एक स्‍थानीय समाचार पत्र को बताया कि रेशम उद्योग को पुनर्जीवित करने की कई रणनीतियां बनाई गयी हैं। जबकि रेशम उत्‍पादन मंत्री ने कहा कि कृमिकोष का उत्‍पादन और उसकी कीमत में इस साल हुई बढ़ोत्‍तरी एक स्‍वस्‍थ प्रवृ‍त्ति प्रदर्शित करता है। उम्‍मीद है कि अपने पुराना वैभव को फिर से बहाल करते हुए राज्‍य में रेशम उद्योग उत्‍कर्ष पर पहुंचेगा। (PIB) 20-नवंबर-2012 19:47 IST
*लेखक एक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।

वि. कासोटिया/अजीत/दयाशंकर- 287

No comments:

Post a Comment